
रतनपुर/बिलासपुर:—
छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था में उस समय शर्म का काला अध्याय जुड़ गया, जब एक दागी अफसर, जिस पर विधवा शिक्षिका से रिश्वत मांगने और फर्जी ट्रांसफर आदेश जारी करने जैसे आरोप सिद्ध हो चुके हैं, उसे ही बिलासपुर ज़िले का जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) बना दिया गया।यह वही अफसर है, जिसे कभी एक शिक्षक की मौत के बाद उसकी पत्नी से पैसे ऐंठने के आरोप में हटाया गया था। आज वही अधिकारी स्कूलों की निगरानी, ट्रांसफर, और नियुक्तियों का सरगना बना बैठा है।क्या यही है ‘सुशासन’?
शिक्षा नहीं, शोषण का तंत्र है ये – जहाँ विधवाएं इंसाफ नहीं, रिश्वत के लिए भटकती हैं
मार्च 2025 —
शिक्षिका नीलम भारद्वाज ने जनदर्शन में फूट-फूट कर बताया कि उनके पति (शिक्षक पुष्कर भारद्वाज) की मृत्यु के बाद लंबित वेतन और अर्जित अवकाश की राशि को पाने के लिए कोटा BEO विजय टांडे और लिपिक एकादशी पोर्ते ने ₹1.34 लाख की रिश्वत मांगी।
जांच में पाया गया कि:
रकम शिक्षिका को न देकर विजय टांडे के निजी खाते में जमा करवाई गई
दिसंबर 2024 से मार्च 2025 तक यह राशि वहीं रही
शिक्षिका न्याय के लिए दर-दर भटकी, लेकिन सिस्टम चुप रहा
⚖️ कलेक्टर ने की कार्रवाई, लेकिन ‘ताकतवर’ अफसर को बचा लिया गया
तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने जब इस पर जांच बैठाई तो साफ़-साफ़ रिश्वत की पुष्टि हुई। लिपिक निलंबित हुआ, टांडे को हटाया गया। लेकिन…
फाइलों में दब गई आगे की कार्रवाई, और अब भ्रष्टाचार का इनाम बनकर सामने आई डीईओ की कुर्सी।
10 जुलाई 2025 को विजय टांडे को बिलासपुर जिले का जिला शिक्षा अधिकारी नियुक्त कर दिया गया — इस खबर ने पूरे शिक्षक समाज में आक्रोश की लहर दौड़ा दी है।
पुराने ट्रांसफर घोटाले की परतें भी फिर उधेड़ी जा रही हैं
विजय टांडे पहले भी शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचा चुके हैं:
2022 में शिक्षक शैलेश यादव का ट्रांसफर बिल्हा ब्लॉक में हुआ था
लेकिन बीईओ रहते टांडे ने उन्हें कोटा ब्लॉक में फर्जी आदेश से ज्वाइन करवा दिया
जिस स्कूल में पद नहीं था, वहाँ दो साल तक वेतन जारी रहा
शासन को हुआ लाखों का आर्थिक नुकसान
अब ये सभी पुराने दस्तावेज, आदेश और गड़बड़ियाँ व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं।
शिक्षा का मंदिर अब ‘रिश्वत का दफ्तर’ बन चुका है
> जब विधवा को न्याय नहीं मिलता, लेकिन दोषी अफसर को कुर्सी मिलती है — तो जनता को समझ लेना चाहिए कि अब व्यवस्था के अंदर का ज़मीर मर चुका है।
इस प्रकरण में सिर्फ एक अफसर की पोस्टिंग नहीं हुई है
यह घटना बताती है कि छत्तीसगढ़ में अब भ्रष्टाचार ‘योग्यता’, और ईमानदारी ‘अयोग्यता’ बन चुकी है।
यह सवाल अब जनता का है:-
क्या रिश्वत लेना छत्तीसगढ़ में प्रमोशन का रास्ता बन चुका है?
क्या विधवा की चीखें सिर्फ जनदर्शन में गूंजती रहेंगी?
क्या कोई सुनेगा भी?