
रतनपुर /बिलासपुर:—
“जिसने तुझे सरहद पर चैन से सुलाया, उसका खुद का सिर छत से टपकती बूंदों में भीगता रहा…”यह कोई फिल्मी संवाद नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने रतनपुर थाना परिसर में तैनात पुलिसकर्मियों की कड़वी सच्चाई है। ब्रिटिश जमाने के बने खंडहरनुमा क्वार्टरों में आज भी जवान अपने परिवार और फर्ज के बीच लाचार झूल रहे हैं।एक ओर जहां सरकार ने थाने के पुराने भवन को देखकर नए थाना भवन का निर्माण करवा दिया, वहीं दूसरी ओर वहां ड्यूटी निभा रहे जवानों की रहने की बुनियादी जरूरत तक अनदेखी कर दी गई।
करीब 45 जवानों की तैनाती वाले इस थाना में केवल 8 क्वार्टर हैं, जो लगभग ध्वस्त अवस्था में हैं। इन क्वार्टरों की दीवारों में दरारें हैं, छतें टपकती हैं, पटरे और टीन के सहारे जैसे-तैसे जवान रातें काटते हैं। ये वही जवान हैं, जो रात-दिन, गांव-गांव जाकर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।तीन महिला जवान भी तैनात हैं, जिनकी स्थिति और भी अधिक असुरक्षित है। बाकी का स्टाफ, मजबूरी में किराए के मकानों में रहने को मजबूर है — वो भी अपने वेतन से, जहां ना विभागीय सुविधा है, ना सुरक्षा का भरोसा।
सूत्र बताते हैं कि इन हालातों को लेकर कई बार प्रपोजल भेजे गए, अफसरों से गुहार लगाई गई, लेकिन हर बार सिर्फ “विचाराधीन” जैसे जवाबों से काम चलाया गया।कुछ महीनों पहले, जब थाना भवन खुद जर्जर हो गया था, तब उसकी मरम्मत की बजाय नई इमारत का निर्माण कराया गया। लेकिन जवानों के लिए नए क्वार्टरों का निर्माण करना मानो प्राथमिकता की सूची से गायब ही हो गया
एक जवान की व्यथा सुनिए, जो आंखें झुकाकर बस इतना ही कह पाया:
“जब आप अपनी ड्यूटी से लौटें और सोचें कि थोड़ी देर आराम करेंगे, तो छत से पानी टपकता है, दीवारों में दीमक रेंगती है और दरवाज़ा ज़रा सी हवा में हिल जाता है… यही हमारी ड्यूटी का साया है।”
यह केवल भवन का मसला नहीं, यह उस सम्मान और बुनियादी हक़ का सवाल है जो हर वर्दीधारी को मिलना चाहिए।
सरकार और विभाग को अब आंखें खोलनी चाहिए। रतनपुर थाना परिसर में आधुनिक, सुरक्षित और पर्याप्त आवासीय क्वार्टरों का निर्माण तत्काल जरूरी है।क्योंकि जो जवान हमें सुरक्षित रखते हैं, उन्हें भी तो किसी सुरक्षित आशियाने का हक़ है।