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रतनपुर में “शिक्षा के नाम पर छल? — एक ही छत के नीचे दो स्कूल, RTE के बहाने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़!”

 

रतनपुर से रवि ठाकुर की रिपोर्ट
रतनपुर से रवि ठाकुर की रिपोर्ट

रतनपुर (कोटा विकासखंड):—-
“जहां शिक्षा मंदिर हो, वहां सच और ईमानदारी की नींव सबसे गहरी होनी चाहिए,” लेकिन रतनपुर से आई एक तस्वीर इस उम्मीद को झकझोरने वाली है। यहां एक ही स्कूल भवन में दो स्कूलों का संचालन हो रहा है — एक का नाम नेता जी सुभाष चंद्र बोस हिंदी माध्यम स्कूल, तो दूसरा रामकृष्ण विद्या पीठ विद्यालय जो अंग्रेजी माध्यम है । दोनों में पहली से बारहवीं तक की कक्षाएं चल रही हैं।लेकिन सवाल ये है कि क्या ये दो नाम सिर्फ कागज़ी हैं? क्या एक ही भवन में दो स्कूलों के नाम पर शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के तहत मिलने वाले सरकारी लाभ का दुरुपयोग हो रहा है?

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RTE में दोहराव की आशंका

नेता जी सुभाष चंद्र बोस विद्यालयमें 45 आवेदन आए, जिनमें 26 बच्चों को दाखिला मिला। वही रामकृष्ण विद्या पीठ विद्यालय में 47 आवेदन आए, जिनमें 25 बच्चों का प्रवेश हुआ।

दोनों स्कूलों का संचालन एक ही छत के नीचे — क्या यह मात्र संयोग है, या किसी रणनीति का हिस्सा?क्या एक ही बच्चे को दो स्कूलों में अलग-अलग दाखिला दिखाकर सरकारी सहायता राशि तो नहीं उठाई जा रही?

नाम और पहचान तक गायब—–

जांच को और गंभीर बनाता है ये तथ्य कि स्कूल भवन पर न तो किसी का नाम अंकित है, और न ही कोई UDISE कोड (यानी स्कूल की सरकारी पहचान)।एक इमारत, दो स्कूल, कोई नाम नहीं — यह पारदर्शिता की जगह छल का संकेत तो नहीं?

बुनियादी सुविधाओं पर सवाल——

जब स्कूल 1 से 12वीं तक की पढ़ाई का दावा कर रहे हैं, और उसमें भी विज्ञान जैसे विषय शामिल हैं, तो ज़रूरी सवाल खड़े होते हैं:क्या वहां प्रशिक्षित शिक्षक हैं?प्रयोगशाला, खेल मैदान, पुस्तकालय, डिजिटल संसाधन जैसी सुविधाएं मौजूद हैं?या फिर ये सिर्फ फॉर्म भरने की खानापूर्ति है?

बच्चों के भविष्य से खिलवाड़?——-

सबसे दर्दनाक पहलू ये है कि अगर ये संदेह सही साबित होता है, तो इसका सीधा असर छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों के उन मासूम बच्चों पर पड़ रहा है, जो शिक्षा के अधिकार के भरोसे स्कूलों की चौखट पर पहुंचे हैं।जहां उन्हें भविष्य मिलना था, वहां शायद उन्हें सिर्फ नाम और आंकड़ों का हिस्सा बना दिया गया।

अब ज़रूरी है सच्चाई की पड़ताल

यह मामला अब महज स्कूल संचालन का नहीं, बल्कि नैतिकता, ईमानदारी और बच्चों के भविष्य का है। ज़रूरी है कि शिक्षा विभाग, प्रशासन और ज़िला कलेक्टर इस मामले की निष्पक्ष जांच कराएं:

क्या दोनों स्कूलों के रजिस्ट्रेशन अलग-अलग हैं?

क्या स्टाफ व छात्रों की सूची में दोहराव है?

क्या सरकारी योजनाओं का अनुचित लाभ लिया गया है?

🔍 “यदि समय रहते सच्चाई सामने नहीं आई, तो यह न केवल सरकारी धन की बर्बादी होगी, बल्कि आने वाली पीढ़ी के सपनों को भी कुचला जाएगा। शिक्षा को व्यापार नहीं बनने देना चाहिए — उसे सेवा और संकल्प के रूप में बचाना ज़रूरी है।”

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