
“सरकार ने कहा – पढ़े हर बच्चा, स्कूलों ने कहा – पहले हमारा फायदा!”
रतनपुर, छत्तीसगढ़ —
जहां एक ओर सरकार हर गरीब बच्चे तक शिक्षा की रोशनी पहुंचाने के लिए तमाम योजनाएं चला रही है, वहीं दूसरी ओर रतनपुर के दर्जनों निजी स्कूल इस प्रयास को अपने लालच की भेंट चढ़ा रहे हैं।
सरकार की ऐतिहासिक पहल के तहत इस वर्ष छत्तीसगढ़ बोर्ड में पंजीकृत सभी प्राइवेट स्कूलों के कक्षा 1 से 10वीं तक के विद्यार्थियों को निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें देने की योजना बनाई गई। छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम ने इन स्कूलों तक मुफ्त किताबें भिजवा भी दीं। स्कूल संचालकों ने डिपो से किताबें उठा भी लीं। लेकिन अफसोस! किताबें आज भी बच्चों की थालियों में नहीं, बल्कि स्कूलों की अलमारियों में बंद हैं।बच्चे स्कूल जा रहे हैं… लेकिन किताबों के बिना। अभिभावक परेशान हैं, मजबूर होकर बाजार से महंगी किताबें खरीद रहे हैं, या उधारी में ले रहे हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो किताबों के अभाव में कोरे कॉपी पर खाली नजरें गड़ाए बैठते हैं।
📍”पढ़ाई कैसे होगी साहब, जब किताबें ही नहीं मिली?”
यह सवाल रतनपुर के गरीब माता-पिता अब हर दिन खुद से पूछते हैं।
शिक्षा विभाग ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सरकारी डिपो से उठाई गई किताबों का वितरण हर हाल में स्कूल शुरू होते ही कर दिया जाए। इसके बावजूद प्राइवेट स्कूलों ने न सिर्फ इस आदेश की अवहेलना की है, बल्कि सैकड़ों बच्चों के भविष्य से खुला खिलवाड़ कर रहे हैं।
इन स्कूलों ने सरकार से किताबें मुफ्त में लीं———लेकिन बच्चों को देने की जगह या तो उन्हें स्टाफ को बाँट दिया, या गोदामों में रख छोड़ा। कुछ जगहों से ये तक खबरें हैं कि इन किताबों को दोबारा बेचने के प्रयास भी चल रहे हैं।
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📢 अफसरों की चुप्पी सबसे शर्मनाक:
शिक्षा विभाग के अधिकारी पूरी तरह मौन हैं। न तो किसी स्कूल का निरीक्षण हुआ, न ही कोई चेतावनी दी गई।
आखिर क्यों?
क्या अफसरों को इस बात का अंदाजा नहीं कि किताबों के बिना इन नन्हे बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है?
📌 योजना का दायरा और भेदभाव:
यह योजना सिर्फ सीजी बोर्ड में रजिस्टर किए गए निजी स्कूलों के 1वीं से 10वीं कक्षा के बच्चों के लिए लागू है।
CBSE और ICSE बोर्ड को इससे बाहर रखा गया है।
11वीं और 12वीं कक्षा के लिए कोई योजना अब तक नहीं आई है।
लेकिन जिन स्कूलों को किताबें मिली हैं, उन्होंने भी बच्चों को इसका लाभ नहीं दिया, यही सबसे बड़ा अपराध है।
📢 स्थानीय जनों की पीड़ा:
राजेश साहू (अभिभावक):
“बेटा कक्षा 4 में पढ़ता है, स्कूल से अब तक कोई किताब नहीं मिली। बाहर से किताब खरीदनी पड़ी। जब सरकार ने किताब दी है, तो फिर ये दोबारा पैसे क्यों मांग रहे हैं?”
सीमा यादव (अभिभावक):
“स्कूल की फीस भरना मुश्किल होता है, किताबें फ्री मिलती तो थोड़ा राहत मिलता। अब तो वही पैसे भी बाजार में लुटाने पड़ रहे हैं।”
📣 सवाल जो अब उठने जरूरी हैं:
अगर किताबें बच्चों को नहीं दी गईं, तो आखिर किसके पास हैं?
क्या शिक्षा विभाग ने एक भी स्कूल से जवाब मांगा?
क्या सरकार की योजना सिर्फ कागजों तक सीमित है?
गरीब बच्चों का भविष्य क्या सिर्फ “प्राइवेट स्कूलों” की तिजोरी भरने का साधन बन गया है?
📌 निष्कर्ष:
सरकार ने जो किताबें दी हैं, वो बच्चों की हैं। उन्हें रोका जाना सिर्फ अनैतिक नहीं, अपराध है।
अब जरूरत है—जांच, कार्रवाई और जवाबदेही की।
हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार है और उसके हाथ में किताब देना सिर्फ कर्तव्य नहीं, एक सामाजिक ज़िम्मेदारी है।
स्केनिंग में समय लग रहा है———
लगभग सभी स्कूलों ने पुस्तक डिपो से उठा लिये है लेकिन सभी संचालको को पुस्तक को स्केनिंग करना है फिर वितरण करना है इस वजह से से लेट लग रहा होगा लेकिन बहुत जल्द बाट दी जाएगी ।
विजय टांडे
जिला शिक्षा अधिकारी
बिलासपुर