
रतनपुर:–
विश्वविख्यात शक्ति पीठ माँ महामाया मंदिर ट्रस्ट एक बार फिर चुनावी संग्राम के दौर से गुजरने वाला है। ट्रस्ट द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के मुताबिक, 10 अगस्त को अध्यक्ष पद का चुनाव होगा। इस चुनाव में 21 सदस्य वोट करेंगे, जिनके मतों से मंदिर ट्रस्ट का अगला अध्यक्ष चुना जाएगा। लेकिन इस बार भी चुनाव से पहले ही अंदरूनी समीकरण और गुप्त सौदेबाज़ी की सुगबुगाहट ने पूरे माहौल को गर्मा दिया है।
प्रतिष्ठा नहीं, पूरी ट्रस्ट की दिशा तय करता है अध्यक्ष पद
यह महज एक पद नहीं, पूरे ट्रस्ट की नीतियों, कार्यशैली और भविष्य की योजनाओं की दिशा तय करने वाला शक्तिशाली स्थान है। अध्यक्ष के चयन के बाद ही दो उपाध्यक्ष, एक मैनेजिंग ट्रस्टी, कोषाध्यक्ष और सहसचिव का मनोनयन होता है – यानी संपूर्ण कार्यकारिणी अध्यक्ष के इशारों पर तय होती है। ऐसे में यह कुर्सी सिर्फ श्रद्धा नहीं, सत्ता और रणनीति का केंद्र बन जाती है।
फिर सक्रिय हुआ ’14 का जादू’: वही चेहरा, वही चाल?
सूत्रों के अनुसार, एक बार फिर कथित कछुआ कांड के आरोपी के इर्द-गिर्द 14 सदस्यों का गठजोड़ बन चुका है, जो पिछली बार की तरह इस बार भी वही चेहरा – आशीष सिंह – को अध्यक्ष पद पर बैठाने की योजना बना चुका है। खबरें हैं कि एक गुप्त “समझौते की राजनीति” के तहत यह समीकरण बनाया गया है –
“हम तुम्हें अध्यक्ष बनाएंगे, बाकी पद हमें सौंप देना”।
यानी एक बार फिर लोकतंत्र के मंदिर में सौदेबाजी की राजनीति दस्तक देने लगी है।
पिछले चुनाव में बदले थे समीकरण, इस बार भी चर्चा में ’14 क्लब’
पिछली बार 21 में से 14 सदस्यों ने एकजुट होकर अपना उम्मीदवार अध्यक्ष बनाया था, लेकिन वो समर्थन शर्तों और सौदों के साथ था। अध्यक्ष बने व्यक्ति को बहुत से निर्णय लेने से पहले गुट विशेष की सहमति लेनी पड़ी थी। वह प्रकरण आज भी ट्रस्ट के गलियारों में फुसफुसाहट और गुपचुप नाराजगी का कारण बना हुआ है।
क्या इस बार टूटेगी परंपरा या फिर चलेगा पुराना फार्मूला?
इस बार एक अन्य सदस्य ने भी अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है। लेकिन सवाल ये है कि –क्या ट्रस्ट निष्पक्ष चुनाव कराएगी या फिर यह मंशा ’14 के गठजोड़’ के सामने दम तोड़ देगी?
भक्तों और स्थानीय जनमानस के बीच यही सबसे बड़ा सवाल बन गया है।
आस्था की जीत या 14 की जादू ——
माँ महामाया का यह मंदिर सिर्फ श्रद्धा का नहीं, राजनीति और रणनीति का भी बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। आने वाला चुनाव सिर्फ एक पद की लड़ाई नहीं, बल्कि पारदर्शिता बनाम गुटबंदी, विश्वास बनाम वर्चस्व और सेवा बनाम सौदेबाजी की लड़ाई बनने वाला है।अब देखना यह होगा कि 10 अगस्त को आस्था की जीत होती है या फिर 14 की राजनीति फिर से अपना जादू चलाती है।