सेवानिवृत्त शिक्षक बी.के. पाण्डेय व स्थानांतरित शिक्षक श्री परमेश्वर पटेल को दी गई भावभीनी विदाई
रतनपुर:—
शासकीय बालक पूर्व माध्यमिक शाला रतनपुर में शनिवार को एक हृदयस्पर्शी एवं गरिमामयी कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें विद्यालय के छात्रों को गणवेश वितरण के साथ ही दो सम्माननीय शिक्षकों को भावभीनी विदाई दी गई।
इस अवसर पर संस्था से सेवानिवृत्त हुए शिक्षक श्री बी.के. पाण्डेय एवं पदोन्नति के पश्चात स्थानांतरित हुए शिक्षक श्री परमेश्वर पटेल को सह सम्मान श्रीफल, साल भेंट कर विदाई दी गई। कार्यक्रम के दौरान विद्यालय परिवार, छात्र एवं अभिभावकों ने दोनों शिक्षकों के शिक्षकीय योगदान को भावभीने शब्दों में याद किया।
बी.के. पाण्डेय (सेवानिवृत्त शिक्षक) ने भावुक होते हुए कहा:—-
“यह विद्यालय मेरा दूसरा घर था। यहां के बच्चों और सहकर्मियों के साथ बिताया हर क्षण मेरी स्मृतियों में हमेशा जीवित रहेगा। मैं चाहता हूं कि सभी छात्र जीवन में ऊंचाइयों को छुएं। मेरी शुभकामनाएं सदैव आप सभी के साथ हैं।”
परमेश्वर पटेल (स्थानांतरित शिक्षक) ने अपने विचार साझा करते हुए कहा:—–
“रतनपुर की इस संस्था में मैंने न केवल पढ़ाया, बल्कि बहुत कुछ सीखा भी। यहां का सहयोगी वातावरण और छात्र-छात्राओं का स्नेह सदैव मेरे हृदय में रहेगा। अब एक नई जिम्मेदारी के साथ मैं आगे बढ़ रहा हूं, लेकिन यहां की यादें हमेशा साथ रहेंगी।”
मुख्य अतिथि मनोज पाटले (पार्षद, वार्ड क्रमांक 05) ने अपने उद्बोधन में कहा:——
“शिक्षक केवल ज्ञान का दाता नहीं, बल्कि समाज का निर्माता होता है। पाण्डेय और पटेल जैसे समर्पित शिक्षकों का योगदान आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देता रहेगा। ऐसे शिक्षकों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। मैं विद्यालय परिवार को इस अनुकरणीय आयोजन के लिए बधाई देता हूं।”
इस गरिमामयी अवसर पर वरिष्ठ नागरिक संघ अध्यक्ष किशनलाल तंबोली, पूर्व उपाध्यक्ष नगर पालिका रतनपुर कन्हैया यादव, प्राचार्य के.एल. फरवी (शहीद नूतन सोनी शा. उ.मा. विद्यालय) सहित समाज के अन्य गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
विद्यालय परिवार से प्रधान पाठक श्रीमती सीमा मरावी, मनीष पांडे, अनवर खान, अजय गुप्ता, श्रीमती ममता भोंसले (भृत्य) व श्रीमती एम. कोशले (सफाई कर्मी) सहित समस्त स्टाफ ने कार्यक्रम की संपूर्ण व्यवस्था और संचालन में सराहनीय भूमिका निभाई।
छात्रों को गणवेश वितरण के दौरान पालकों की भी उत्साहजनक भागीदारी रही। पूरा कार्यक्रम सौहार्द, सम्मान और स्नेह का प्रतीक बन गया।
यह आयोजन न केवल एक विदाई था, बल्कि शिक्षा के मूल्यों और गुरु-शिष्य परंपरा की सजीव झलक भी थी।