
रतनपुर/बिलासपुर:—
छत्तीसगढ़ के हृदय में बसे खूंटाघाट (खारंग जलाशय) की नर्म लहरें और घना हरियाल जंगल आज सिसक रहा है। जहां कभी मगरमच्छ, पक्षी और अन्य वन्यजीव निर्भय होकर प्रकृति की गोद में विचरण करते थे, वहां अब शोर, मशीनों की घरघराहट और इंसानी लालच की गूंज सुनाई दे रही है। वजह – बिना अनुमति के चल रही वाटर स्पोर्ट्स और साहसिक गतिविधियां, जिसने इस शांत और संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को झकझोर कर रख दिया है।
खारंग सेवा समिति द्वारा जलाशय क्षेत्र में शुरू की गई इन गतिविधियों के खिलाफ अब आवाजें बुलंद होने लगी हैं। हाल ही में मुख्य वन संरक्षक, बिलासपुर को एक मार्मिक आपत्ति पत्र सौंपा गया, जिसमें इन अवैध गतिविधियों पर तत्काल रोक लगाने और संबंधितों पर कठोर कार्रवाई की मांग की गई है।यह क्षेत्र केवल जल से भरा एक बांध नहीं, बल्कि सैकड़ों वन्यजीवों का आश्रयस्थल है। मगरमच्छों जैसे संरक्षित जलजीव, दुर्लभ पक्षी, मछलियाँ और सैकड़ों वनस्पतियाँ यहां पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं। लेकिन आज उनके प्राकृतिक घर में बिना दस्तक दिए घुसपैठ हो रही है – बोटिंग की आवाज़, मोटर की धमक और अनियंत्रित मानवीय गतिविधियाँ इस नाजुक पारिस्थितिकी को तहस-नहस कर रही हैं।
शिकायतकर्ता ने अपने आवेदन में लिखा है –
“ये सिर्फ एक जलाशय नहीं, हमारी धड़कनों का हिस्सा है। यहां की हर लहर, हर जीव, हर पत्ता सांस लेता है। और आज वह सांसें घुट रही हैं… क्योंकि हमने अपने मुनाफे के लिए उनकी शांति छीन ली है।”वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत यह गंभीर उल्लंघन है, परंतु अभी तक न तो विभाग ने कोई अनुमति दी, न ही कोई प्रभावी निरीक्षण किया गया। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है
– क्या प्रकृति की कीमत पर पर्यटन का विस्तार वाजिब है?स्थानीय लोगों का आक्रोश इस बात से है कि यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगी, तो आने वाले वर्षों में खूंटाघाट अपने अस्तित्व को खो देगा। न वन्यजीव बचेंगे, न हरियाली, और न ही वो सुकून जिसकी तलाश में लोग यहां आते हैं।
अब सारी निगाहें वन विभाग पर टिकी हैं –
क्या वो इस विलाप को सुन पाएंगे?
या फिर खूंटाघाट भी उन जगहों की सूची में शामिल हो जाएगा,
जो इंसानी लोभ की भेंट चढ़ गए…