
कोरबा/पाली/रतनपुर:—-कोरबा जिले के पाली तहसील अंतर्गत ग्राम शिवपुर में ‘बड़े झाड़ का जंगल’ माने जाने वाले हरे-भरे क्षेत्र में अंधाधुंध पेड़ कटाई और आगजनी का सनसनीखेज मामला सामने आया है। आरोप है कि श्रीराम ग्रीन फ्यूल्स एलएलपी द्वारा बायोमास पायलट संयंत्र की स्थापना के लिए औद्योगिक गतिविधियों की आड़ में पर्यावरणीय नियमों को दरकिनार करते हुए बड़े पैमाने पर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया गया है।
शिकायतकर्ता द्वारा कलेक्टर को सौंपे गए आवेदन में यह उल्लेख किया गया है कि ग्राम शिवपुर, पटवारी हल्का नंबर-9, तहसील पाली के खसरा नंबर 541/1 (76.331 हेक्टेयर) और 541/2 (1.11 हेक्टेयर) की भूमि बड़े झाड़ का जंगल मद के रूप में दर्ज है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में हरे-भरे पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पति और जल स्रोत मौजूद हैं, जो पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है।
शिकायत में बताया गया कि कंपनी द्वारा ग्राम पंचायत शिवपुर में संयंत्र स्थापना के लिए प्रस्ताव, जिसमें भू-परिवर्तन, पर्यावरणीय स्वीकृति, बिजली व पानी की आपूर्ति, सब-स्टेशन निर्माण, भूजल दोहन और अन्य निर्माण संबंधी अनुमति की मांग की गई है। लेकिन अनुमति से पहले ही कंपनी ने गैरकानूनी रूप से सैकड़ों पेड़ काटकर जला दिए, जिससे वन क्षेत्र की जैव विविधता को भारी क्षति हुई है।
इतना ही नहीं, संबंधित खसरा नंबरों में से कई हिस्से शासकीय पट्टे की जमीन हैं, जिनमें “अहस्तांतरणीय भूमि” के रूप में दर्ज कैफियत दी गई है। ऑनलाइन नक्शा और बटांकन अधूरा होने के कारण भूमि स्वामित्व और वैधता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
🔴 प्रमुख आपत्तियाँ और पर्यावरणीय खतरे:
बड़े झाड़ के जंगल की अवैध कटाई और आगजनी।
बिना पर्यावरणीय स्वीकृति के भूमि पर निर्माण की तैयारी।
भूजल दोहन से जलस्तर पर संकट।
गहिला नाला जैसे प्राकृतिक जल स्रोत पर प्रदूषण का खतरा।
ग्राम सभा की अनुमति लिए बिना औद्योगिक प्रस्ताव।
आवेदक ने प्रशासन से संयंत्र स्थापना पर तत्काल रोक, भूमि उपयोग में हुए परिवर्तन की जांच, और हरे-भरे पेड़ों की कटाई व जलाए जाने की स्वतंत्र जांच की मांग की है। यह भी कहा गया है कि अगर ऐसे मामलों पर समय रहते कार्यवाही नहीं हुई तो यह स्थानीय पर्यावरण, वन्यजीवों और ग्रामीण जीवन के लिए घातक सिद्ध होगा।
यह मामला अब न केवल एक पर्यावरणीय संकट, बल्कि प्रशासनिक निगरानी और पारदर्शिता की परीक्षा बनता जा रहा है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अधिकारियों की भूमिका भी अब सवालों के घेरे में है।