
रतनपुर/कोटा (कंचनपुर पंचायत)
छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में एक ऐसा ज़मीन घोटाला सामने आया है, जिसने जनजातीय हकों की नींव हिला दी है। कंचनपुर में आदिवासी की ज़मीन को “जादुई कागज़ों” के जरिए पहले सामान्य घोषित किया गया और फिर एक गैर-आदिवासी व्यक्ति के नाम पर रजिस्ट्री कर दी गई। यह मामला सिर्फ फर्जीवाड़ा नहीं — यह संविधान, पेसा कानून और आदिवासी अस्तित्व के साथ खुली गद्दारी है।
कागज़ों में कत्ल, ज़मीन में कब्ज़ा
दूसरे राज्य के आदिवासी की भूमि को जानबूझकर छत्तीसगढ़ में “सामान्य” केटेगरी में दर्शाया गया।
ग्रामसभा की अनुमति और कलेक्टर की स्वीकृति के बिना हुई रजिस्ट्री।
राजस्व और रजिस्ट्री विभाग की चुप्पी ने पूरे सिस्टम की सच्चाई उघाड़ दी।
ये मामला नहीं, आदिवासी पहचान पर हमला है
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को संविधान की पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून से सुरक्षित किया गया है। लेकिन यह मामला दिखाता है कि कैसे कागज़ों में खेल कर, कलम से जमीन और हक छीन लिए जाते हैं।
“जब संविधान बेबस हो जाए और कागज़ी साजिशें हावी हो जाएं – तो ये सिर्फ धोखा नहीं, आदिवासी आत्मा की हत्या है।”
बवाल और जनाक्रोश:
आदिवासी संगठनों और ग्रामवासियों ने इस घोटाले को “जमीन हथियाने की संगठित साजिश” करार देते हुए मांगी:
तत्काल FIR
रजिस्ट्री निरस्त
राजस्व विभाग की उच्च स्तरीय जांच
रजिस्ट्री प्रक्रिया की फॉरेंसिक ऑडिट
जनजातीय संगठनों का ऐलान – चुप नहीं बैठेंगे!
“अगर प्रशासन कार्रवाई नहीं करता, तो हम सड़क से विधानसभा तक लड़ाई लड़ेंगे। ये ज़मीन नहीं, हमारी पहचान है!”
अब सवाल ये है:
क्या आदिवासी हकों की रक्षा करने वाले कानून सिर्फ किताबों तक सीमित हैं?
या अब भी इस लोकतंत्र में संविधान से बड़ी ताकतें पैदा हो चुकी हैं?