अवैध रेत उत्खनन का मामला अब और पेचीदा होता जा रहा है। जिस घाट पर ग्रामीणों और समाजसेवियों ने अवैध खनन पकड़ा, उसी को लेकर अब कई सवाल उठने लगे हैं।
गांव के कोटवार और ग्रामीणों का कहना है कि जब रेत पकड़ी गई थी तो उसे पंचायत या स्थानीय प्रशासन को सौंपने के बजाय 20 किलोमीटर दूर करही कछार निवासी संजय यादव के नाम पर कागज बना दिया गया। जबकि मौके पर संजय यादव मौजूद ही नहीं था। इसके बावजूद सचिन साहू के खिलाफ झूठा शिकायत दर्ज कर दिया गया। ग्रामीण इसे “बड़ी साजिश” बता रहे हैं।
कोटवार का आरोप है कि उन्हें प्रक्रिया से अलग रख दिया गया और दबाव बनाकर मामले को ठेकेदारों और विभाग के पक्ष में मोड़ा गया। ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल चोरी की रेत का मामला नहीं बल्कि खनिज विभाग और ठेकेदारों की मिलीभगत का खेल है।
तीन महीने पहले भी इसी घाट से अवैध उत्खनन पकड़ा गया था, जहां 20 से 25 गाड़ियों को ग्रामीणों ने रोका था। मगर खनिज विभाग ने रिपोर्ट में 150 से ज्यादा हाइवा दर्ज कर दिया और बाद में “सेटलमेंट” दिखाकर रॉयल्टी पर्ची जारी कर दी। अब उन्हीं पर्चियों की आड़ में हजारों गाड़ियां चल रही हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि जब भी वाहन पकड़े जाते हैं तो मामला दर्ज कर खानापूर्ति कर दी जाती है, लेकिन वाहन बाद में ठेकेदार ले जाते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि यह एक संगठित रेत माफिया गिरोह है, जिसमें विभाग की संलिप्तता भी है।
👉 कुल मिलाकर, ग्रामीण और समाजसेवी ईमानदारी से अवैध रेत का विरोध कर रहे हैं, जबकि ठेकेदार और विभाग मिलकर अवैध कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन ग्रामीणों की आवाज सुनेगा या रेत माफिया का संरक्षण जारी रहेगा?
*अरपा पैरी के धार: रेत उत्खनन से खतरे में अरपा का भविष्य*
छत्तीसगढ़ का राजगीत “अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार…” सिर्फ शब्दों का गीत नहीं, बल्कि इस धरती की पहचान और आस्था का प्रतीक है। लेकिन दुख की बात यह है कि वही अरपा नदी, जिसे छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा माना जाता है, आज अवैध रेत उत्खनन और लगातार कटाव की मार झेल रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसी तरह नदी के पेट से रेत निकाली जाती रही, तो अरपा और उसकी सहायक नदियाँ अपना प्राकृतिक स्वरूप खो बैठेंगी। न सिर्फ नदी की गहराई और बहाव प्रभावित होगा, बल्कि जलस्रोत सूखने लगेंगे और आने वाले वर्षों में इसका असर सीधे तौर पर खेती और पेयजल पर पड़ेगा।
ग्रामीण और समाजसेवी लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अवैध रेत उत्खनन से अरपा का अस्तित्व खतरे में है। कई जगह तो नदी की धारा बदलने लगी है और तटवर्ती गांवों में कटाव का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
यह सवाल अब और भी गंभीर है क्योंकि राज्य का गीत ही अरपा के नाम पर है, लेकिन सरकार और प्रशासन की नीतियों में अरपा की सुरक्षा और संरक्षण कहीं दिखाई नहीं दे रहा।
👉 जरूरत है कि छत्तीसगढ़ सरकार अभी से ठोस कदम उठाए—
अरपा और उसकी सहायक नदियों पर अवैध रेत उत्खनन पर रोक लगे।
रेत खदानों का वैज्ञानिक और सीमित उपयोग सुनिश्चित हो।
नदी संरक्षण के लिए विशेष कार्ययोजना बने।
ग्रामीणों और समाजसेवियों की आवाज को दबाने के बजाय सुना जाए।
पंचायतो की ली जाए वैध और वाजिब मंजूरी।
कुल मिलाकर, आज सवाल सिर्फ अरपा का नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ की पहचान और भविष्य का है। अगर अरपा बचेगी तो ही “अरपा पैरी के धार” गीत की आत्मा जिंदा रहेगी।










